विद्यालय और गणित शिक्षा
जीवन के नैसर्गिक विकास व उत्थान के लिए हमें ज्ञान,समझ,सूचना और अक्ल की जरूरत पड़ती हैं.
ये जरूरत हम अपने परिवेश,प्रकृति, स्कूल,विद्यालय, पाठशाला,परिवार,घर,समाज से पूरी करते हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है विद्यालय जो हमे जीवन में सबसे पहले एक औपचारिक शिक्षा देता हैं। इस औपचारिक शिक्षा का पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्चा एक निश्चित तयशुदा कार्यक्रम, परिधि के अंतर्गत होता हैं। जीवन की यह पहली सीढ़ी हमें चढ़ाती भी और कभी कभी उतार भी देती हैं।गणित शिक्षा इस सीढ़ी का पहला पायदान होता हैं। प्रतक्ष्य अप्रतक्ष्य रूप से हम गणितीय शिक्षा के लूप,कंटूर अथवा घेरे में ही रहते हैं। जीवन पर्यन्त गणित की सांक्रियाओ,सूत्रों, संख्याओं, सिद्धांतो, तथ्यों,कारण एवं परिणामों, लाभ हानि,मापन के साथ साथ चलते हैं। अगर हम कहे तो ये हमारी परछाई की तरह होती है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विद्यालयी शिक्षा में गणित बच्चों के जीवन के लिए। एक स्टार्ट अप की तरह हैं। एक किस्म का गियर है गणित जो जीवन की रफ्तार की बनाए रखने के लिए आवश्यक त्वरण उत्पन्न करता रहता हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी गणित को क्रिया गतिविधि,प्रतिदर्श, मॉड्यूल,खेल खेल में सीखाने
, समझाने,बताने एवं पढ़ाने
पर जोर देती हैं। लेकिन जमीं पर उतरते उतरते इतनी अच्छी बातें बंजर हो जाती हैं। और फिर शुरू होती है गणित को जोर जबरदस्ती पढ़ने, पढ़ाने, समझाने,सीखने, शिक्षण करने की।
यह गणित के प्रति अरुचि उत्पन्न कर देती हैं। क्योंकि थोपा हुवा ज्ञान तो बोझ ही लगेगा। उसे तो हर कोई जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी उतरवाना चाहेगा। विभिन्न स्कूल बोर्डों, परिषदों के निर्धारित पाठ्यक्रमों में गणितीय क्रियाकलाप, गतिविधि,विचार विमर्श,चिंतन,खोज, प्रतिदर्श,मॉड्यूल के लिए सबसे कम जगह हैं। जबकि पाठ्यक्रम के बाहर हम इस पर लच्छेदार भाषण पिलाए जा रहे हैं। करने , न करने के बीच की रिक्तता को कम करना होगा। बच्चों को उच्च प्राथमिक स्तर के बाद गणित पड़ने के लिए जोर जबरदस्ती ना किया जाए तो यह तर्कसंगत व यथार्थ लगेगा। इससे जहां गणित जैसे महत्त्वपूर्ण विषय के प्रति बोझपन,उदासीनता,रूखापन होने अथवा रहने का संशय रहता हैं वही दूसरी ओर गणितीय विज्ञान, शिक्षा भी अपना उन्नयन विकास रोक लेती हैं।
शिक्षक पत्थर की लकीर बन जाते हैं।कुल मिलाकर गणित शिक्षा शुरू होने से पहले सुस्त पड़ जाती हैं।
इसीलिए किंगरगार्डन,नर्सरी, प्री नर्सरी,पाठशाला, स्कूल विद्यालय विभिन्न गणितीय धारणाओं को, आकृतियों को व क्रिया गतिविधियो एवं अलग अलग प्रतिदर्शो से पढ़ाया जाना चहिए। इससे गणित शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों में रुचि,उत्साह,लगन,ध्यान , जिज्ञाशा, उत्सुकता उत्पन्न होगी। जो आगे चलकर बच्चों में उनकी खोजी प्रवृत्ति को जगाएगा। सीधे से सब्दो में हम इन गतिक रूपो से बच्चे को गणित पड़ने के लिए तैयार कर सकते हैं। बच्चा स्वतः ही धारणाओं , सिद्धांतो,प्रमेय, निर्मेय,सूत्रों को प्रतिपादित अथवा निकलना,डेरिवेशन सिख जायेगा।बच्चा जब इन सबसे जूझेगा,टकराएगा, तो यकीनन सोचेगा,कल्पना करेगा। और इससे उसकी स्मृति में समझने की प्रवृति विकसित होगी। इससे गणित को समझने, सीखने, सीखाने,बताने, पड़ने, पढ़ाने,विचार करने में बहुत मदद मिलेगी। गणितीय रूप से बच्चो में विचारो की सुस्पष्टता, निर्णय लेने की शक्ति, तार्किकता,दृढ़ता,चीजों को सृजन की रचनात्मकता उत्पन्न होगी। यही आदतें उसके जीवन को बनाने के काम आएंगी। और वही दूसरी ओर सफल व्यक्ति की तरह वह अनुकरणीय होता।
गणित मूलतः अब्स्ट्रैक्ट से कंक्रीट, अमूर्त से मूर्त की ओर चल कर सीखने, सीखाने,समझने , समझाने, पढ़ाने, पढ़ने, पहचानने,जानने की ही एक श्रृंखला हैं। जो प्रथम सत्य भी है और अंतिम सत्य भी। इसीलिए गणित शिक्षा का यह सच बच्चों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिष्यों तक जरूर पहुंचाना
चाहिए।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल”
उत्तराखंड
(लेखक विद्यालय शिक्षा के गणित एवं विज्ञान शिक्षण, शोध ,विशेषज्ञता से जुड़े हैं)