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पर्यावरण बचाना सबकी जिम्मेदारी

पर्यावरणनाशें नश्यति सर्वजनत्वः
पवनः दृष्टता याति प्रकृति विकृतायते

अर्थात पर्यावरण के नष्ट होने से सभी जीव जंतु नष्ट होते है और हवा के खराब होने से प्रकृति अप्रकृति होती है,बिगड़ जाती हैं.

आज के परिपेक्ष्य में यह श्लोक बहुत कुछ कह जाता है, सुना जाता हैं.
आग से धधकते जंगल,चारो तरफ धुवां ही धुवां, सांस लेने में तकलीफ, आंखो में जलन,व्यवहार में चिड़चिड़ापन,सूरज की रोशनी का जमीन तक न पहुंचाना,नौतपा,अनापेक्षित बढ़ता तापमान, आंधी, बवंडर, चक्रवात, बेमौसम बरसात, बादल फटना, ओले का कहर बनकर बरसना,पहाड़ों तक का गर्मी में तप जाना ना सिर्फ वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, प्रकृति प्रेमियों का ध्यान खींचा है बल्कि आम जन मन का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया हैं।
सामान्य लोग भी अब इससे चिंतित दिखते है और इसकी बाते करते हैं। ये बताता है कि समस्या गंभीर है. प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी आज बीमार है. इसे ठोस मरम्मत व इलाज,उपचार की जरूरत है.
सबसे पहले बीमारी की वजह को जानते हैं.ये रॉकेट साइंस जितना कठिन भी नही की इसके बिगड़ने, होने अथवा ना होने को जाना जा सकें. हमारे चारों ओर का परिवेश मुख्यतया हमारे द्वारा ही निर्मित होता हैं.हम ही इसके भले बुरे होने अथवा न होने के जिम्मेदार हैं.पर्यावरण क्षरण प्राकृतिक विपदा नही है बल्कि यह मानव जनित आपदा है.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण की थीम भूमि पुर्नस्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखा लचीलापन रखा हैं।
प्रदूषण बड़ने और जलवायु परिवर्तन की विकृति का प्रमुख कारण हमारी प्रकृति के प्रति लालच भरी दृष्टि एवं विकास कार्यों में वैज्ञानिक सोच का अभाव हैं .कार्बन उत्सर्जन हमारी नीले ग्रह पृथ्वी के तापमान को लगातार बड़ाने के लिए उत्तरदायित्व होता हैं. इसके दुष्परिणामों में ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि है. दोनो ही हमारे जलवायु, निवास, को प्रतिकूल प्रभावित करते हैं. अब तो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी की निचली सतह जो निकल और लोहे से बनी होती है भी पीछे की ओर जा रही.वैज्ञानिक शोध से पता चला है इसका पृथ्वी के घूर्णन की गति पर भी प्रभाव पड़ने लगा हैं। नेचर पत्रिका में हाल ही में इस पर एक शोध प्रकाशित हुआ हैं.
पर्यावरण विशेषज्ञ की माने तो तापमान के लिए ग्रीन हाउस गैसे, वनों की कटाई,जीवाश्म ईंधन का दहन हैं. तापमान में कमी तभी आएगी जब वैश्विक कार्बन उत्सर्जन कम होगा. इसके लिए खतरनाक ग्रीन हाउस गैस जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, हेक्सा फ्लोराइड की मात्रा बड़ने से रोकना होगा. इनका निदान प्राथमिक स्तर से शुरू किया जाय तो यकीनन हम अपने पर्यावरण को प्रदूषण से आजाद करा पाएंगे.
पर्यावरण की समस्या सबके लिए है इसीलिए इसके निदान भी सभी कोअपने स्तर से करने होंगे. समाधान का हिस्सा बनकर ही हम छोटे छोटे उपायों, तरकीबों, विधियों को अपनाकर धरती पर आए इस खतरे को टाल सकते हैं.
कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए यातायात, परिवहन में जीवाश्म ईंधन में कमी, सोलर, बैटरी, इलेक्ट्रिकल, साइकिल, पैदल, वॉकिंग व सार्वजनिक यातायात को अपनाना पड़ेगा. एक ही ऑफिस, कैंपस में कार्य करने वाले अधिकतर एक ही वाहन में आवागमन करें, प्रीमीज में सिर्फ साइकिल और आन फुट चले.इन आदतों को अपनी दैनिक दिनचर्या का अंग बनाना पड़ेगा।
पृथ्वी का फेफड़ा यानी वन क्षेत्रों को बड़ाना पड़ेगा.
हर अवसरों पर वृक्षारोपण करे। जैसे शादी, विवाह, जन्मदिन, गृह प्रवेश, कथा, पूजा, पाठ, प्रार्थना, रीति रिवाजों को निभाते समय, व्रत, उपासना, तीज त्यौहारों और लोगो को इसके लिए प्रेरित करें .
उपहार के तौर पर भी पेड़ पौधों का आदान प्रदान हो सकता हैं.
तीन आर यानी रियूज,रिड्यूस,रीसाइकल का अधिकाधिक प्रयोग कर अपने जीवन में शामिल करें.
घर दरवाजे पर ही कूड़े को जैविक, अजैविक में वर्गीकृत कर दे.जैविक कूड़े से कंपोस्ट, खाद बनाए और अजैविक को यथा स्थान पर ही रखे, फैलाए नहीं.
प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करें. इसको जुट, पेपर, रिंगाल, बांस, कपड़े के थैलों से प्रतिस्थापित करें.
निर्माण कार्यों में वैज्ञानिकता, प्रकृति सम्वत,इसके भूगोल के अनुरूप जैसे पहाड़ों में मिट्टी,पत्थर,घास,लकड़ी,रेत, भूषा, बांस इत्यादि चीजों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाई जा सकती हैं.
यूज एंड थ्रू की जगह टिकाऊ चीजों का इस्तमाल करें.बच्चे रिफिल , जिसमे स्याही भरी जा सकी और पुनः प्रयोग लाई जा सके कलम को अपनाएं.
ये प्रयास भले ही आकर प्रकार में छोटे हो लेकिन इनका प्रभाव मिलजुल कर एक चमत्कारी परिणाम देगें.
निश्चित ही हमारी आदतों में शुमार ये बातें पर्यावरण प्रदूषण को बड़ने से रोकेंगी ,बचाएंगे और कम भी करेंगें .
हमारा छोटा सा ये प्रयास रंग लायेगा, और हमारा घर पृथ्वी सभी के अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम हो पाएगी.

प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचरल” उत्तराखंड
(लेखक पर्यावरण,प्रकृति और विज्ञान से गहरा संबंध रखते हैं)

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