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अंधेरे के विरुद्ध विद्रोही जन गायन!

पुस्तक समीक्षा

गीत सिर्फ मनोविनोद का साधन मात्र नही है वरन् यह शोषण,उत्पीड़न और अमानवीय कृत्य के विरुद्ध जेहाद का शंखनाद है। कवि और गीतकार जन जन के जीवन शैली में व्याप्त विसंगति को अपने रचनाओं के माध्यम से जन पटल पर अभिव्यक्त करते हैं ताकि जनसमस्याओं को उजागर कर शासकीय स्तर तक पहुंचाया जाए ।इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश बांदा के सुप्रसिद्ध जनकवि और वरिष्ठ साहित्यकार रामावतार साहू ने जन संवेदनशीलता , अंतःकरण की मार्मिक अभिव्यक्ति और भावनाओं के पुंज को अपने काव्य संग्रह में प्रस्तुत किया है। “पसीने से भीगे ही हम गीत है ” शीर्षक से अलंकृत इस काव्य संग्रह की सृजनशीलता वास्तव में जनभावना को समर्पित है,काव्य संग्रह की समस्त कविता आम आदमी को सक्रिय रूप से आंदोलित करने वाली है ।इनकी कविताएं न सिर्फ सृजनात्मक शब्दों की श्रृंखला है,बल्कि वर्तमान जीवन शैली को प्रतिबिंबित करने वाली काव्य पुंज है। किसान,मजदूर,महिलाओं और अभिवंचितों की आवाज को अपने कविताओं में सृजित करने वाले कवि ने पुस्तक की सार्थकता को सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है । कवि ने बहुजन के दुख दर्द को अपनी लेखनी से प्रकाशवान किया है। इस पुस्तक में बहुत सारी कविताओं में दैनिक जिंदगी के विभिन्न पक्षों आशा,निराशा,सुख ,दुख,शांति,हिंसा और जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा का अनूठा चित्रण किया गया है। जन सैलाब का चित्र इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर अंकित किया गया है, पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है,चर्चित चित्रकार शेष प्रकाश शुक्ल द्वारा चित्रित आवरण पृष्ठ को कविताओं के अनुकूल बनाया गया है । ए आर पब्लिशिंग कंपनी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को पाठक बार बार पढ़ेंगे और अन्य पाठक को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे क्योंकि ये कविताएं और गीत अंधेरे के विरुद्ध जन गायन है।

सुधाकर कांत चक्रवर्ती

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