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महाकुंभ की महत्व पर उठते कई सवाल

 

विनोद तकियावाला स्वतंत्र पत्रकार /स्तम्भकार

भौतिकवादी इस युग में जहाँ प्रत्येक क्षेत्र में आज विज्ञान का तुती बोल रही है,वही वैश्विक मानचित्र के पटल पर इनदिनों एक बार फिर से भारत की चर्चा चहुँ दिशाओं हो रही है।अवसर है आस्था व आध्यात्म के अविस्मरणीय स्वर्णिम पल की।सर्व विदित रहे कि इन दिनों तीर्थराज्य की राजधानी धर्म नगरी प्रयागराज स्थित गंगा युमना व सरस्वती की पवित्र संगम स्थली पर भव्य व दिव्य महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है।यूँ तो कुंभ चार वर्ष व महाकुंभ 12 बर्ष में लगता है।देश में सिर्फ चार जगहों पर 12 वर्ष के अंतराल में लगता है।
ये चार शहर है हरिद्वार,प्रयागराज, उज्जैन और नासिक।इसी वजह से इन शहरों को कुंभनगरी कहा जाता है।जिनका उल्लेख प्राचीन हिंदू शास्त्रों व पुराणों में भी मिलता है,पौराणिक ग्रन्थ के अनुसार आदिकाल में जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला था,जिसे पाने के लिए देवताओं व असुरों में होड़ मच गई थी।तब स्वंय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को छलकर अमृत देवताओं को ही पिलाया था लेकिन इस दौरान कलश के अमृत की कुछ बूंदें छलककर धरती पर आ गिरी थीं।ये बूंदें हरिद्वार,प्रयागराज,उज्जैन और नासिक और इसी वजह से इन्हीं चार स्थलों महाकुंभ का आयोजन होता है।
आप के मन उठना स्वामिक है कि हर 12 साल के बाद ही क्यों आता है।तो आप को बता दे कि अमृत के लिए असुरों और देवताओं के मध्य 12 दिनों का युद्ध हुआ था।मै स्पष्ट कर दूँ कि उस समय के12दिव्य आज के एक दिन 12 साल के बराबर है।इसी कारण महाकुंभ का आयोजन पूरे12साल के अंतर पर होता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार कुंभ मेले में स्नान करने से मोक्ष मिलता है व इंसान के सारे पापों का अंत हो जाता है।एक विशेष पक्ष का मानना है कि यह महाकुंभ न केवल धार्मिक आयोजन है,बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत प्रदर्शन भी है।हालाकि यथार्थ की घरातल ये सभी बातें कोपल कलपित लगती है।एक ओर तो हम पृथ्वी से इसरो चन्द्रयान 3 व आदित्या एल वन चाँद व सूर्य की तस्वीर भेज रहे हो।मै यहाँ स्पष्ट कर दुँ कि मै कोई धर्म विरोधी या नास्तिक व्यक्ति नही हूँ।आध्यात्म व धर्म आस्था व धारण की अवधारणाओ पर आधार्रित होता है।आज जो महाकुम्भ के नाम की ब्राण्ड,मॉकेट्रिग व विज्ञापन पोस्टर बाजी,खबरिया चैनल के माध्यम पताल भैरवी राग अलापे जा रहे है,वही दूसरी तरफ शोसल मीडिया के ओछी मानसिकता व हरकतों से कुछ लोग नाराज देख रहे है।इसका बड़ा उद्धाहरण हर्षा रिछारिया,मोनालिसा और आईआई टीन बाबा के नाम से प्रसिद्ध अभय सिंह,ये तीनों ही चेहरे महाकुंभ में ना केवल चर्चित व चर्चा में रहे बल्कि बेलगाम शोसल मीडिया के द्वारा अपने नीजी स्वार्थ सिद्धि के कारण कई चेहरों ने सोशल मीडिया पर सुर्खियां तो खुब बटोरीं टी आर पी व अपनी ब्यूबर की संख्या मिलयन में पहुंचाने के कारण इन चर्चित चेहरो को अध्यात्म व आस्था के संगम को बीच में ही छोड़कर जा चुके हैं।महाकुंभ की शुभारम्भ से ही सोशल मीडिया पर छाई हुई हर्षा रिछारिया को सबसे सुंदर साध्वी का तगमा तक दे दिया गया,लेकिन जब निरंजनी अखाड़े के रथ पर भी बैठ कर शाही सवारी करते नजर आईं तो इसे लेकर संत समाज में विवाद शुरू हो गया। कुछ संतों ने तो हर्षा के संग रथ पर बैठने और भगवा वस्त्र धारण करने पर अपनी आपत्ति तकजताई।यह मामला इतना तुल पकड़ गया है कि हर्षा रिछारिया ने रोते हुए महाकुंभ छोड़ने तक का ऐलान कर दिया।वहीं दूसरी ओर मोनालिसा भी महाकुंभ छोड़कर चली गई है।बताया जा रहा है कि ऐसा करने के लिए उसके पिता ने कहा था।मोनालिसा खूबसूरती की वजह से चर्चा में आई।सर्वविदित रहे कि इंदौर की रहने वाली मोनालिसा रुद्राक्ष की माला बेचने कर कुछ पैसे कमाने के लिए यहाँ आई थी।ताकि वहअपने परिवार के भरण पोषण में मदद करे सके,लेकिन महाकुंभ में उनकी खूबसूरती के कारण चर्चा में आ गई।जिसके कारण कुछ लोक उसकी तुलना सिनेजगत व स्वर्ग लोक की परी व कलाकारों से कर रहे हैं।वही सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में उसकी आंखों पर काफी रिएक्शन आए।मोनालिसा की बहन ने बताया कि वह तो माला बेचने आई थी,यहाँ के लोग मोनालिसा को माला बेचने नहीं देते थे और वीडियो छुप छुप के बनाते थे,इसी के चलते वह चली गई।इसी तरह आई आई टी एन बाबा के नाम से चर्चा में आए अभय सिंह ने आई आई टी बॉम्बे से पढ़ाई की थी।उनपर आरोप है कि उन्होंने गुरु के प्रति अपशब्दों का प्रयोग किया था।इसी के चलते बाबा को अखाड़ा शिविर और उसके आस- पास आने पर रोक लगा दी गई है।इस पूरे मामले को लेकर अखाड़े का कहना है कि संन्यास में अनुशासन और गुरु के प्रति समर्पण महत्वपूर्ण है।इसका पालन न करने वाला संन्यासी नहीं बन सकता है।
उपरोक्त उदाहरण एक छोटा किन्तु कटु सत्य है।जिसकी अनदेखी नही की जा सकती है।कुछ लोगो ने तो महाकुंभ को आस्था व भावना से खिलवाड़ व एक राजनीतिक दल नीजी स्वार्थ से जोड़ दिया है।उनका तर्क है कि अगले वर्ष राज्य में विधान सभा के चुनाव होने वाले है,महाकुंभ के नाम सरकारी खजानों व सरकारी तंत्र व जिस तरह से पानी तरह से बहाया जा रहा है।व्यवस्था के नाम श्रुद्धालुओ के लिए सुविधा के नाम सिर्फ और सिर्फ खाना पुर्ति की गई है।वह सच्चे-संत साधुओं श्रुद्धाओं को कठिनाईयों का समाना करना पड़ रहा है।मौनी अमावस्या के अवसर महत्वपूर्ण के पूर्व घटित घटना ना केवल कई मासूम को जान गवाना पड़ा इसके पूर्व टेन्ट में आग लगी थी। जिसकी खबरे छन छन कर आ रही है।गोदी मीडिया अपने आकाओं की गुनगान व टी आर पी को बढ़ाने के ब्रेकिंग न्यूज़ देते थक नही रहें। परिणाम स्वरूप महाकुम्भ की महत्व पर कई सवाल उठाए जा रहे वही भारत जैसे विकासशील देश के लिए सिर्फ ऐसे आयोजन जहाँ करोड़ो जनता को 5 किलो अनाज के लिए लाईनों मे खडा रहना पड़ता है।शिक्षा व स्वास्थ्य व रोजगार के लिए सड़को पर आये दिनो आन्दोलन करना पड़ता हो,धर्म की आड़ में अपने चेहते की फैक्टरी चलें,एक वर्ग के मतदाताओ को रिझा -बहका कर अपने पक्ष में वोट करवा सके। महाकुंभ की महता कम सरकार व उनके चेहते पूँजीपतियों के लिए प्रचार प्रसार के संग मार्केट्रिग कर रहें। एक संत ने तो सबाल उठाते हुए यहाँ तक कह दिया कि क्या बात पुरे कुम्भ मेला क्षेत्र सिर्फ दो व्यक्तियों की फोटो लगी।वही विपक्षी दल के नेता ने कहाँ कि कुम्भ में डुबकी लगाने से महंगाई,भुखमरी व बेरोजगारी देश से समाप्त नही होने वाली है।महाकुंभ की महत्व पर उठते कई सवाल राष्ट्र व समाज के लिए सोचने को मजबुर करती है।क्या यह वही भारत है जिसकी कल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व आजादी के दीवाने, हमारे स्वतंत्रता सेनानी व संविधान निमाताओं की थी ,जिन्होने भारत को धर्म निरपेक्ष व लोकतांत्रिक देश बनाने की सपना देखा था।

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