
राष्ट्र प्रथम न्यूज़ नेटवर्क
दिल्ली। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच, हंसराज कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित 5वें एचएचआरएस दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 2025 के पहले दिन का भव्य शुभारंभ हुआ। उद्घाटन समारोह की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और अतिथि सत्कार के साथ हुई। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय राज्य मंत्री श्री तोखन साहू उपस्थित रहे, साथ ही आरएसएस के कार्यकारी सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के मुख्य संरक्षक श्री इंद्रेश कुमार ने मुख्य वक्ता के रूप में सम्मेलन को संबोधित किया। विशेष अतिथियों में प्रो. राधेश्याम शर्मा, प्रो. एन.पी. दीक्षित, प्रो. गुरमीत सिंह, प्रो. भागीरथी सिंह और वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी शामिल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति प्रो. मज़हर आशिफ और लेफ्टिनेंट जनरल आर.एन. सिंह ने की। इस प्रतिष्ठित सम्मेलन का मुख्य विषय “भारत और विस्तारित दक्षिण (दक्षिण-पूर्व) एशियाई देशों के बीच बढ़ते सहयोग का महत्व” है। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना और क्षेत्रीय संवाद को प्रोत्साहित करना है। सम्मेलन का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के हिमालय अध्ययन केंद्र और जामिया मिलिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन के सहयोग से किया जा रहा है।
सम्मेलन के दौरान मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्यमंत्री श्री तोखन साहू जी ने कहा कि भारत संस्कृति और मूल्यों के लिए विश्व में एक अलग पहचान रखता है। इस तरह के सम्मेलन भारत के विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः को आगे ले जाना का रास्ता मिलेगा। भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। माननीय मोदी जी के नेतृत्व में विश्व भारत की सराहना कर रहा है। साथ ही श्री इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि भारत के लिए ज्ञान और विज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण उसका चरित्र है। चरित्र को ही संस्कृति कहा गया है, और किसी भी परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से करने पर ही समाज का कल्याण संभव है। भारत हमेशा से ही संस्कृति और मूल्यों को लेकर चलने वाला देश रहा है, जहाँ चरित्र और धर्म सर्वोपरि हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मानवता की सर्वोच्च सीमा दूसरों के लिए जीना और उनकी सेवा करना है। साथ ही, उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत संपूर्ण समाज के कल्याण के लिए कार्य करने वाला देश है और अहिंसा को ही परम धर्म मानता है, इसलिए भारत विश्व गुरु था, है और हमेशा रहेगा। जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति प्रो. मज़हर आशिफ ने अपने प्रभावशाली वक्तव्य में सांस्कृतिक विविधता और समावेशिता पर गहन चर्चा की। उन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसे भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए इन्हें सामाजिक सौहार्द और वैश्विक एकता के मूल स्तंभ बताया। उनके विचारों ने न केवल सभागार में उपस्थित विद्वानों और छात्रों को प्रेरित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति की व्यापकता और उसकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता को भी रेखांकित किया। लेफ्टिनेंट जनरल आर.एन. सिंह ने कहा कि उन्होंने हमेशा देश की सेवा में अपना योगदान दिया है और प्रत्येक नागरिक के लिए देश सर्वोपरि होना चाहिए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आज का समय ऐसा आ गया है कि लोग विदेशों में रहने को प्राथमिकता देने लगे हैं, लेकिन अपने देश में जो विशेषता और आत्मीयता है, वह कहीं और नहीं मिल सकती। भारत में विभिन्न संस्कृतियों और मूल्यों से परिपूर्ण लोग रहते हैं, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भारत ने संयम और विवेक के साथ कार्य किया, जिससे पूरे विश्व में उसकी पारंपरिक औषधियों और उपचार पद्धतियों की उपयोगिता को पहचाना गया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों ने वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक धरोहर को और अधिक मान्यता मिली।
सम्मेलन के पहले दिन उद्घाटन समारोह के साथ दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहले तकनीकी सत्र में ‘भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच ऐतिहासिक संपर्क’ विषय पर चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. राजीव नयन ने की, जबकि डॉ. राजीव रंजन, डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी, डॉ. ज्योतिरूपा राउत, डॉ. पुम खान पौ और डॉ. सोफना श्रीचंपा ने प्रमुख वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। सत्र का संचालन डॉ. बाल कृष्ण नेगी ने किया। दूसरे तकनीकी सत्र का विषय ‘भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक संपर्क’ रहा। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. चंद्राचूड़ सिंह ने की, जबकि डॉ. राकेश कुमार, डॉ. प्राची अग्रवाल, डॉ. लिपी घोष और डॉ. संपा कुंडू ने वक्ता के रूप में अपनी प्रस्तुति दी। इस सत्र का संचालन डॉ. संजीव कुमार ने किया। सम्मेलन के पहले दिन देश-विदेश से आएं विशेषज्ञ और शोधार्थियों द्वारा लगभग 32 पेपर प्रस्तुत किए गए। साथ ही इस सम्मेलन में इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, लाओस, सिंगापुर, थाईलैंड आदि देश के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। दो दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन का समापन भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया की साझा सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाले विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ, जिसमें दोनों क्षेत्रों की परंपराओं और सांस्कृतिक समृद्धि को सुंदर प्रस्तुतियों के माध्यम से दर्शाया गया।