
न्याय प्रणाली दशकों की देरी को लेकर जांच के दायरे में
राष्ट्र प्रथम न्यूज़ नेटवर्क
दिल्ली : दो दशक से अधिक समय के इंतजार के बाद, डॉ. आशा गोयल की निर्मम हत्या का बहुप्रतीक्षित मुकदमा आधिकारिक रूप से शुरू हो गया है। जिसमें पहले गवाह की गवाही, न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह मामला, जो पर्याप्त सबूतों के बावजूद बार-बार देरी का सामना कर रहा है, अब भारतीय अदालतों में आगे बढ़ रहा है।
डॉ. आशा गोएल, 63 वर्षीय कनाडाई नागरिक और प्रतिष्ठित प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं, जिनकी 22 अगस्त, 2003 को मुंबई में अपने भाई के घर पर हत्या कर दी गई थी। उन पर सोते समय हमला किया गया और ग्रेनाइट पत्थर से पीट-पीटकर मार डालने से पहले उन्होंने कई हमलावरों से मुकाबला किया। यह अपराध मालाबार हिल इलाके में, 14वीं मंजिल पर सुधाकर बिल्डिंग के अंदर हुआ।
जांच में जल्द ही शक की सुई उनके भाइयों—सुरेश अग्रवाल और सुभाष अग्रवाल—की ओर घूमी, क्योंकि हत्या का संभावित कारण संपत्ति विवाद बताया गया। हालांकि, सुरेश अग्रवाल का 2003 में निधन हो गया, लेकिन पुलिस ने अपनी जांच जारी रखी, जिसके परिणामस्वरूप 2006 में चार व्यक्तियों—प्रदीप परब, मनोहर शिंदे, पी.के. गोयनका और नरेंद्र गोयल—की गिरफ्तारी हुई। जांचकर्ताओं का दावा है कि सुरेश और सुभाष ने ही इन लोगों को हत्या के लिए सुपारी दी थी।
डॉ. गोयल अपने सबसे छोटे भाई शेखर के हक की लड़ाई लड़ रही थीं और चाहती थीं कि उन्हें अपने पिता की संपत्ति में उचित हिस्सा मिले। बताया जाता है कि इस मुद्दे पर उनका सुरेश और सुभाष से विवाद हो गया था। इस विवादित संपत्ति में मुंबई में स्थित कीमती अचल संपत्तियां शामिल थीं।
मजबूत सबूतों के बावजूद—जिसमें एक आरोपी का इकबालिया बयान, डीएनए विश्लेषण और खून से सने कपड़ों की बरामदगी शामिल है—यह मामला न्यायिक प्रक्रियाओं की वजह से वर्षों तक रुका रहा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही निर्देश दिया था कि यह मुकदमा छह महीने के भीतर पूरा किया जाए, लेकिन इस आदेश को दिए हुए भी दस साल से अधिक का समय बीत चुका है।
डॉ. गोयल की बेटी और डेनवर विश्वविद्यालय में आपराधिक कानून की प्रोफेसर, रश्मि गोयल ने कहा, “इतनी लंबी देरी, खासकर जब एक आरोपी का इकबालिया बयान और भौतिक साक्ष्य मौजूद हैं, भारतीय न्याय प्रणाली की कार्यकुशलता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। इस प्रक्रिया में एक प्रमुख गवाह और एक आरोपी की भी मृत्यु हो चुकी है।”
अब इस मामले की पैरवी भारत के जाने-माने विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम कर रहे हैं, जिन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। कई हाई-प्रोफाइल आपराधिक और आतंकवाद से जुड़े मामलों की सफलतापूर्वक पैरवी कर चुके निकम ने न्यायिक प्रक्रिया में हुई अत्यधिक देरी को स्वीकार किया और गोयल परिवार की अटूट संघर्षशीलता की सराहना की।
यह मामला न केवल भारतीय न्याय प्रणाली में देरी की समस्या को उजागर करता है, बल्कि पारिवारिक संपत्ति विवादों और महिलाओं की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस पर नजर रखी जा रही है, क्योंकि डॉ. गोयल का परिवार कनाडा में रहता है और अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है।
इस महीने के अंत में इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आने की उम्मीद है, जब मुख्य गवाह प्रदीप परब, जो अब सरकारी गवाह बन चुके हैं, अपनी गवाही देंगे। डॉ. गोयल के पति और उनके तीन बच्चे—संजय, रश्मि और सीमा—जो उत्तरी अमेरिका में रहते हैं, अब भी उन्हें उम्मीद है कि न्याय की जीत होगी।