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दिल्ली की सिंधासन के लिए सियासी जंग शुरू – खबरीलाल

भारतीय राजनीति के मर्मज्ञ व पंडितयों के मध्य चिन्तन व चर्चा दबी जुबान से शुरू हो गई कि मोदी व शाह के लिए तीसरे काल में सरकार चलाना इतना आसान नहीं,जिसकी झलकआये दिनों देखने को मिलनें लगी है

विश्व के राजनीति पटल पर सदियों से अपना सिक्का जमाने वाला हमारा देश भारतवर्ष सैदव ही चर्चा के केन्द्र में रहता है।भारतीय राजनीति में इसी क्रम में परिवर्तन का चक्र चला दिल्ली दरबार के सिंधासन भाजपा व उनकी सहयोगी दलों की सरकार बनी, 2014 से 2024 दो कार्यकाल तक चली,भाजपा व मोदी सरकार के हौसले बुलंद थें।दूसरे कार्यकाल में तो विपक्ष को कुछ नही माने देश के लोकतंत्र के मन्दिर में संविधान संसोधन,बिल पास करवाने विपक्षों दलो के सांसद का निलम्बन आदि काफी चर्चा व चिन्तन का विषय बना,पार्टी द्वारा अपने संरक्षक स्वरूप आर एस एस अर्थात संघ की अनदेखी तक करते लगी।सर पर 2024 का साधारण चुनाव था।इसके पूर्व राज्यो के विधान सभा चुनावों में सफलता मिलती देख कर,अपने समर्थकों व पार्टी के कार्यकत्ताओं के लिए फरमान जारी कर दिया कि मोदी-शाह के नेतृत्व में अबकी बार 400 का दिया,पार्टी नें अपने मोदी-शाह जिसे चाणक्य भी कहा जाने था। लोकसभा चुनाव के परिणाम 400 का आकंडा पहुंचना तो दुर की बात-सरकार बनाने के लिए दो दलों का बैसाखी का लेना पड़ा।भारतीय राजनीति के क्षितिज पर विगत 10 बर्षो तक चमकने -दमकने वाला मोदी व उसके अजीज दोस्त शाह की करिश्माई जोड़ी के नेतृत्व में एन डी ए व दो बैशाखी के सहारे की सरकार तो बना ली,लेकिन दिल्ली दरबार की तीसरी मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही यह पूछा जाने लगा था कि भाजपा व उसके सहयोगी दलों की केन्द्र में सरकार कितने दिन चलेगी ?यहाँ पर आपके मन सक व शंका उठना स्वाभाविक है कि 10 बर्षो से केन्द्र सरकार में एन डी ए की नेतृत्व वाली सरकार के लिए ऐसी कहना उचित है क्या।मै यहाँ पर स्पष्ट कर दूँ कि ऐसी आशंका किसी भी गठबंधन सरकार के लिए जताई जाती रहीहै।कई गठबंधन सरकारें चली भी हैं,तो गठबन्धन की सरकार ताश के पत्ते की भरभरा कर गिरी भी हैं आप को स्मरण होगा सन1992 में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में बनी नरसिंह राव की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया था।उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)ने भी अपना कार्यकाल पूरा किया था।डा0 मनमोहन सिंह की अगुवाई में दो सरकारों–यूपीए 1और यूपीए 2 ने अपना कार्य काल पूरा किया था।वही गठबंधन सरकारों के बीच में ही भरभराकर गिर पड़ने के कई उदाहरण हैं।भारतीय राजनीति में आपातकाल अध्याय के बाद केंद्र में विपक्ष की बनी पहली सरकार जनता पार्टी की एक तरह से गठबंधन की ही सरकार थी।वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। बाद में 1989 में जनता दल के नेतृत्व में बनी सरकार भी बीच में ही गिर गई थी इस सरकार को एक ओर से वामपंथी तो दूसरी ओर से बीजेपी समर्थन दे रही थी।इसी तरह से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी दो सरकारें भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं।एक बार तो वाजपेयी लोक सभा में बहुमत ही नहीं साबित कर पाये(सरकार महज 13 दिन रही)और दूसरी बार सरकार बनी तो महज 13 महीनों में ही गिर गई।इससे पहले चौधरी चरण सिंह की सरकार महीने भर और चंद्रशेखर की सरकार भी चार महीने में ही गिर चुकी है।
एक बच्चे की सउरी(गर्भवती जिस कमरे में बच्चे को जन्म देती है)में ही नजर उतराई(झाड़-फूंक) होने लगे उसके सौ साल जीने की उम्मीद कैसे लगाई जाए।राहुल गाँधी और लालू प्रसाद यादव दोनों इस ख्वाहिश को जता चुके हैं कि नरेंद्र मोदी की एन 1 व एन 2 की बैसाखी वाली सरकार कितने दिन चल पायेगी।दोनों सहयोगी दलों मोदी सरकार से अपनी दलो व राज्यों सरकार कई बात की उम्मीद लेकर बैठे हैं। सर्व विदित रहे कि तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू,जिनकी पार्टी के 16 सदस्य हैं और जनता दल यू के नेता नीतीश कुमार,जिनके दल के 12 सदस्य हैं,किसी न किसी दिन सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे।संसद के बजट सत्र में ,इस बात के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा अपनी चुतराई से दोनों राज्यों को बड़े पैकेज देकर उनकी चाहत का ख्याल रखा गया। उन्हें असंतोष नहीं हुआ लैकिन दूसरे राज्यों में असंतोष देखने को मिला है,उनका मानना है कि मोदी सरकार ने बजट में उनके साथ अन्याय हो रहा है।जिसकी झलक नीति आयोग की बैठक मुख्य मंत्रियों का बहिष्कार कर हालॉकि प० बंगाल की मुख्य मंत्री सुश्री ममता बनजी बैठक में बैठक के मध्य में छोड़ कर चली गई।उनका आरोप था कि उन्हें बैठक में बोलने के लिए एक तो कम समय मिला ‘ इतना ही बीच में उनका माईक बंद कर दिया।मोदी सरकार व पार्टी का मानना है कि अगर चंद्रबाबू और नीतीश के समर्थन वापस ले लेने पर भी सरकार के पास 266 सदस्यों का समर्थन रहेगा।जिसकी सरकार होती है उसके लिए छह बाकी सदस्यों का इंतजाम करना बहुत मुश्किल नहीं होगा।वे महाराष्ट्र,कर्नाटक,गोवा, अरुणाचल प्रदेश,मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की तरह केंद्र में भी दूसरी पार्टियों के सांसदों को बीजेपी में मिलाकर अपनी संख्या 272 तक पहुंचाने की कोशिश जरूर करेंगे।पीछे भी यही मोदी शाह टीडीपी के सांसदों को तोड़ भी चुके हैं, इसलिए इस बात की गारंटी नहीं है कि वे इस बार ऐसी कोई कोशिश नहीं करेंगे इसलिए सरकार गिरे,यह सहज में तो संभव नहीं।लेकिन सरकार के सामने समस्या है,और वह असल समस्या यह है कि भाजपा और संघ में मोदी और शाह के खिलाफ असंतोष बन आया है।उनकी वोट दिला पाने की क्षमता और चाणक्यगीरी–दोनों पर सवालिया निशान लग गया है।माना जा रहा है कि उनकी गलत नीतियों और उनकी मनमानी के कारण लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान हुआ है।इसी वर्ष अक्टूबर-नवंबर में होने वाले जम्मू-कश्मीर,महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड विधान सभा के चुनावों में यदि भाजपा हारती है तो मोदी-शाह के नेतृत्व पर सीधा सवाल उठ सकता है।उन्हें बदलने की मांग उठ सकती है।
साथ ही,मोदी और शाह पर अब जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का भी दबाव है।लोकसभा चुनाव में जनता ने दिखा दिया है कि वह मोदी सरकार के कार्यकाल से खुश नहीं है और उन्होंने अपनी कार्यशैली न बदली तो इस बार बहुमत नहीं दिया,आगे इस लायक भी नहीं छोड़ेगी कि वे सरकार बना सकें।भाजपा का कोर वोटर वर्ग भी अब यह आशा छोड़ चुका है कि मोदी और शाह अब हिंदुत्व का कोई बड़ा काम कर पाने की हैसियत में हैं।2047 में भारत की बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाने का लोक लुभावना उन्हें प्रंसद नही आ रहा।उनका सीधा सवाल है,कहाँ गया एनआरसी या कॉमन सिविल कोड का मुद्दा?पीओके को भारत में मिलाने का मुद्दा?बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने का मुद्दा? ये सवाल दिनोंदिन प्रखर होते जाएंगे।विपक्ष अब मज़बूत है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण लोक सभा में इसी सत्र के दौरान सरकार द्वारा वफफ बोर्ड संसोधन बिल पास नही करवाई पाई ‘ आखिरकार जे पी सी में भेजना है।वही राज्य सभा में सभापति व राज्य सभा सांसदों के बीच बढ़ते ठकराव ‘ ये तनाव इतनी बढ़ गई कि विपक्ष सभापति महोदय से अपने वर्त्ताव मे बदलाव करने की माँग करने लगी ‘ बात उनके पर महाभियोग लाने की तैयारी करने के लामबन्ध हो गए ‘ हालाकि संसद के सत्र जो पूर्व कार्यक्रम के अनुसार 12 अगस्त तक चलने वाली थी शुक्रवार को सदन को अगली घोषणा तक स्थगित कर दी गई।वही राहुल गाँधी की छवि भी बदल चुकी है।वें विपक्ष के नेता बन गए है।सम्पूर्ण विपक्ष भी अब लोगों के बीच सवाल पहुँचाने में कमजोर नहीं पड़ेगा।खैर इस संदर्भ में अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी,ये तो अतीत के गर्भ में छुपा है।एक बात 100% सच है कि राजनीति कुछ में कुछ असम्भव नही है।इसके लिए आप व हमें इतंजार करना ही उचित होगा।फिलहाल आप सभी यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहुँ से दोस्ती,ना ही काहुँ बैर। खबरीलाल तो माँगे,सबकी खैर ॥ फिर मिलेंगे,तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग।तब तक के लिए आप सभी से विदा चाहते है।

अलविदा।
आलेख-विनोद तकियावाला 
स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार

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